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श्रीमद्भागवत कथा ! आज़ परीक्षित मोक्ष , गीता पाठ चढ़ोत्तरी के साथ कथा का समापन भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी संगम में गोता लगाकर श्रोताओं ने जाना अलौकिक रहस्य

श्रीमद्भागवत कथा ! आज़ परीक्षित मोक्ष , गीता पाठ चढ़ोत्तरी के साथ कथा का समापन भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी संगम में गोता लगाकर श्रोताओं ने जाना अलौकिक रहस्य

जनादेश 24 न्यूज़ जांजगीर चांपा भाई-बहन का रिश्ता स्नेह आत्मीयता अपनत्व विश्वास और समर्पण का प्रतीक हैं चाहे सुख हो या दुःख जीवन भर साथ निभाने की प्रेरणा देता हैं। यह पवित्र बंधन अनंतकाल से चला आ रहा हैं और चलता ही रहेगा।
प्रेम अजर और अमर रहता हैं । श्रोताओं को अनंतकाल तक नव शक्ति, प्रेरणा, आनंद और शुभत्व के प्रकाश से जन-जन को आलोकित करता रहेगा । भाई-बहन का रिश्ता हर दिन ही नहीं बल्कि हर क्षण प्रेम, स्नेह, विश्वास और आत्मीयता से सराबोर रहे । द्रौपदी और श्रीकृष्ण का प्रेम उदात्त हैं । इस पवित्र बंधन को अधिकाधिक रुप से श्रेय का कार्य भगवान श्रीकृष्ण को दिया जाता हैं। जब श्रीकृष्ण की अंगुली चोटिल हो गई, रक्त बहने के लिए कपड़ा नहीं मिला तब द्रौपदी ने अपने कोसें की साड़ी फाड़ी और उनकी अंगुली में बांध दिया । आज़ मैंने बहन के प्रेम को सबके सामने देखा हैं । रक्त देखी पीर धागा । साड़ी आपकी अंजलि में देखने के लिए भाग गए। वे धागा हैं अभागा जो बंदे के काम नहीं आगे । ब्राह्मण पारा स्थित मोहनलाल द्विवेदी जी के निवास स्थान पर स्वर्गीय श्रीमती आशा द्विवेदी के वार्षिक श्राद्ध निमित्त श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य के दौरान व्यासपीठ से भागवताचार्य पंड़ित दिनेश कुमार दुबे पुरगांव वाले ने कही । सुप्रसिद्ध भागवताचार्य श्रद्धेय दुबे जी ने कहा कि आज-कल भाई-बहन का प्रेम दिखावा हो गया हैं , भाई-बहन का प्रेम खत्म होता जा रहा हैं । कथा श्रवण करने पंडित पवन पाठक, डॉ रविंद्र कुमार द्विवेदी, शशिभूषण सोनी, पद्मेश शर्मा, अरविंद तिवारी सहित बड़ी संख्या में महिलाएं भी उमड़ रही हैं । अंचल के प्रसिद्ध कथावाचक दुबे ने उपस्थित श्रोताओं के बीच कृष्ण और सुदामा का चरित्र रखा। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की भक्ति में डूब गए। आज़ श्रीमद्भागवत कथा का अंतिम दिन हैं ।

*भगवान श्रीकृष्ण ने सौ गलतियों को सहन करते हुए अंत में शिशुपाल का वध किया ।*

कथावाचक दुबे ने धार्मिक ग्रंथ महाभारत का उद्वहरण देते हुए बताया कि एक बार पांडवों के बड़े भ्राता युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ कर रहे थे । यज्ञ में श्रीकृष्ण को , कौरवों को बुलाया गया था । शिशुपाल वहां पहुंचा था । शिशुपाल श्रीकृष्ण को पसंद नहीं करता था और मौका मिलते ही उन्हें अपमानित करने लगता था । शिशुपाल की मां रिश्ते में श्रीकृष्ण की बुआ थी। उन्होंने अपनी बुआ को वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की सौं गलतियों को लगातार क्षमा करते रहेगा । इस वरदान की वजह से श्रीकृष्ण शिशुपाल की अपमान जनक बातों का जवाब नहीं देते थे । राज सूय यज्ञ में श्रीकृष्ण का सम्मान देखकर शिशुपाल गुस्सा हो गया । वह भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा । इधर पांडवों ने शिशुपाल को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह चुप ही नहीं हो रहा था। श्रीकृष्ण मौन होकर उसकी गलतियां गिन रहे थे । जैसे ही शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो गईं , श्रीकृष्ण ने उसे अंतिम अवसर दिया और कहा कि अब एक भी गलती मत करना , तुम्हारी सौं गलतियां हो चुकी हैं । शिशुपाल बहुत अहंकारी था , श्रीकृष्ण के सचेत करने के बाद भी रुका नहीं और फिर एक और अपमानजनक बात कह दी ।
श्रीकृष्ण ने तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर धड़ से अलग कर दिया और सुदर्शन चक्र वापस श्रीकृष्ण की उंगली पर आ गया । उस समय चक्र की वज़ह से भगवान की ऊंगली पर चोट लग गई , ख़ून बहने लगा । द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की ऊंगली से बहते हुए ख़ून को देखा तो तुरंत ही अपनी कोसे की साड़ी एक टुकड़ा फाड़ा और श्रीकृष्ण की ऊंगली पर लपेट दिया ।

*द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया और भगवान ने उसकी लाज रखी ।*

आचार्य दुबे ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वरदान दिया था कि वे समय आने पर इस पट्टी के एक-एक धागे का ऋण जरूर उतारेंगे । शिशुपाल वध के कुछ समय बाद युधिष्ठिर और कौरवों के बीच जुआं खेला गया , जिसमें युधिष्ठिर द्रौपदी को हार गए। दुर्योधन के आदेश पर दु:शासन ने भरी सभा में द्रौपदी को ले आया और उसके वस्त्रों को खींचने लगा । उसी समय द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया और श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई ।

*अगर कोई व्यक्ति मदद करता हैं तो उसका उपकार नहीं भूलना चाहिए ।*

भक्ति रुपी गंगा में डुबकी लगाते हुए दुबे जी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । उन्होंने बताया कि महाभारत के दिव्य कथा का संदेश यह हैं कि अगर कोई व्यक्ति हमारी मदद करता हैं तो हमें उसके उपकार को जीवन-भर नहीं भूलना चाहिए । अगर मदद करने वाले व्यक्ति को कभी भी हमारी जरूरत हो तो हमें उसकी मदद करने में पीछे भी नहीं हटना चाहिए ।

*कथा श्रवण करने आज़ प्रेस क्लब चांपा अध्यक्ष डॉ कुलवंत सिंह सलूजा सहित पूरी टीम पहुंचेगी ।*

श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य के अंतिम दिन गुरुवार सायंकाल प्रेस क्लब चांपा अध्यक्ष डॉ कुलवंत सिंह सलूजा, सचिव डॉ मूलचंद गुप्ता, कोषाध्यक्ष विक्रम तिवारी, उपाध्यक्ष गौरव गुप्ता, संतोष देवांगन, डॉ रविंद्र कुमार द्विवेदी, डॉ राम खिलावन यादव जनादेश पोर्टल न्यूज़-24, भूपेंद्र देवांगन सलवा जुड़ूम न्यूज़-24, राजसिंह चौहान आरबी न्यूज़ तथा साहित्यकार तथा शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चांपा के सहायक प्राध्यापक (वाणिज्य ) रहे शशिभूषण सोनी जी कथा स्थल ब्राम्हण पारा स्थित मोहनलाल द्विवेदी निवास पहुंचेंगे । भागवताचार्य पंड़ित दिनेश कुमार दुबे पुरगांव वाले महराज का श्रीफल, अंगवस्त्र, वार्षिक कैलेंडर तथा माल्यार्पण भेंटकर स्वागत किया जायेगा ।

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