धार्मिक आयोजन! सप्त-दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन हुआ और व्यास पीठ मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य ही श्रेष्ठ मार्ग बताया पंड़ित दिनेश दुबे
धार्मिक आयोजन! सप्त-दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन हुआ और व्यास पीठ मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य ही श्रेष्ठ मार्ग बताया पंड़ित दिनेश दुबे
न्यूज़ जांजगीर-चांपा ! श्रीमद्भागवत कथा को अमर कथा माना गया हैं , यह कथा हमें मुक्ति का मार्ग दिखलाती हैं , जो जीव श्रद्धा और विश्वास के साथ मात्र एक बार इस कथा को श्रवण कर लेता हैं उनका जीवन सुखमय हो जाता हैं , वह सदैव के लिए मोक्ष की प्राप्ति कर लेता हैं और उसे सांसारिक बंधनों के चक्कर में आना नही पड़ता हैं । इस कलिकाल में मोक्ष दिलाने वाला श्रीमद्भागवत महापुराण कथा से कोई अन्य श्रेष्ठ मार्ग नही हैं।
उक्त उद्गार कोसा , कांसा एवं कंचन की नगरी एवं मां समलेश्वरी की पावन धरा चांपा में श्रीमति आशा द्विवेदी की स्मृति में आयोजित संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस अंचल के ख्याति प्राप्त भागवताचार्य पंड़ित दिनेश कुमार दुबे ( पुरगांव वाले ) ने मुख्य यजमान श्रीमति श्वेता-जयप्रकाश द्विवेदी सहित उपस्थित श्रोताओं को आज कथा का रसपान कराते हुए कही ।
*राजा परीक्षित को ऋषि पुत्र द्वारा सातवें दिन मरने का श्राप लगा और उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया।*
आचार्य श्री दुबे ने बताया कि परीक्षित को ऋषि पुत्र द्वारा सातवें दिन मरने का श्राप दिया गया था । उन्होंने अन्यान्य उपाय के बजाय श्रीमद्भागवत की कथा का श्रवण किया और मोक्ष को प्राप्त कर भगवान् के बैकुंठ धाम को चले गए । ऐसे श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का सौभाग्य केवल श्रीकृष्ण की असीम कृपा से ही प्राप्त हो सकती हैं ।
*मृत्यु तो केवल शरीर की होती हैं आत्मा तो अजर-अमर हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के बाद अब कोई डर नही लगता ।*
कथा सुनाने के बाद श्रीशुकदेव जी ने राजा परिक्षित को पूछा कि राजन मरने से डर लग रहा हैं क्या ? तब राजा ने कहा महाराज मृत्यु तो केवल शरीर की होती हैं आत्मा तो अमर होती हैं , भागवत कथा सुनने के बाद अब मेरा मृत्यु से कोई डर नही हैं और अब मैं भगवत्प्राप्ति करना चाहता हूं ।
*परीक्षित की आत्मा पहले से ही श्रीकृष्ण के चरणारविन्द में समा गई थी, भागवत कथा श्रवण से मोक्ष की प्राप्त हो गया ।*
मुझे कथा श्रवण कराने वाले शुकदेव जी आपको कोटि-कोटि मेरा प्रणाम कहकर परिक्षित ने श्री शुकदेव जी को विदा किया । इसके बाद तक्षक सर्प आया और राजा परीक्षित के शरीर को डसकर लौट गया । परीक्षित की आत्मा तो पहले ही श्रीकृष्ण की चरणारविन्द में समा चुकी थी और कथा के प्रभाव से अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया ।
*श्रीमद्भागवत ही सारे वेद-पुराण और शास्त्रों का मुकुट हैं।*
आचार्य श्री दुबे ने बताया कि परीक्षित को जब मोक्ष हुआ तो ब्रह्माजी ने अपने लोक में तराजू के एक पलड़े में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद्भागवत को रखा तब भागवत का ही पलड़ा भारी रहा । अर्थात् श्रीमद्भागवत ही सारे वेद पुराण शास्त्रों का मुकुट हैं । इधर पिता की मृत्यु को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं तब देवता सहित सभी ऋषि-मुनियों ने राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं । कथा विश्रांति बेला में पंड़ित अरविंद तिवारी, डॉ रमाकांत सोनी, पंडित शीतल द्विवेदी तथा शशिभूषण सोनी ने आचार्य श्री दुबे का स्वागत करते हुए आशिर्वाद प्राप्त किया । कथा का अंतिम दिन होने के कारण पंडाल खचाखच भरा हुआ था । श्रद्धालु भक्त जनों की उपस्थिति में संगीतकारों ने अपनी अनेक भक्तिमयी संगीत और कथाओं के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की सात दिनों की सारगर्भित कथा का अमृतमय वाणी बिखरा।
*महाराज श्री ने बताया कि इस कलयुग में भी भागवत कथा का रसपान कर अपना कर्ल्याण कर सकता हैं ।*
श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपना कल्याण कर सकता हैं । इस कलिकाल में भी वह भगवान के नाम स्मरण मात्र से भगवत् शरणागति की प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना सकता हैं । उन्होंने बताया कि भागवत कथा हर मनुष्य के भाग्य में नहीं होती हैं , वे बहुत भाग्यशाली ही होते हैं जिनके भाग्य में भागवत कथा श्रवण करने का अवसर होता हैं । देखा जाये तो भागवत कथा कलियुग में साक्षात् भगवान के दर्शन के बराबर होते हैं। श्रीमद्भागवत कथा के स्मरण करने मात्र से हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने हेतु देवता गण भी तरसते रहते है । मानव प्राणी को इस कथा का लाभ व आशीर्वाद आसानी से भी मिल सकता हैं , श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से मानव जीवन का पूरी तरह से कल्याण हो जाता हैं और उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।