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शिक्षक: समाज के पथ प्रदर्शक और राष्ट्र के निर्माता-डॉ रविन्द्र द्विवेदी*

“*शिक्षक: समाज के पथ प्रदर्शक और राष्ट्र के निर्माता-डॉ रविन्द्र द्विवेदी*
भारतीय संस्कृति में गुरु, अर्थात शिक्षक को प्रथम पूज्य माना गया है। इसी संदर्भ में एक संत कवि ने कहा है:
*प्रथम गुरु को वंदना, दूजे आदि गणेश।
तीजे मां शारदा, कंठ विराजो प्रवेश।*

05 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा गुरुओं के प्रति ऐसी भावना को दर्शाती है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के नाम समर्पित कर दिया है, इसलिए शिक्षक दिवस भारत में प्रतिवर्ष 05 सितंबर को मनाया जाता है। हमारा देश गुरु के प्रति असीम निष्ठा रखता है।
भारतीय संस्कृति में ऋणों की व्याख्या में एक ऋण ‘गुरु ऋण’ भी है, जिससे उऋण होना संभव नहीं है। गुरु का शिष्य को दिया गया ज्ञान-दान इतना महान होता है कि उसके समतुल्य कोई और नहीं है। इसलिए गुरु के प्रति जीवन पर्यंत सम्मान का भाव होना चाहिए।

*सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खंड।
तीन लोक ना पाइए, और 21 ब्रह्मांड।*
अर्थात, सात दीप, नौ खंड, तीन लोक और 21 ब्रह्मांड में सद्गुरु के समान हितकारी कोई नहीं है। इसलिए गुरुओं को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है।
एक शिक्षक की सोच मां की तरह होनी चाहिए। बच्चों को बहुत ही स्नेह भाव से जुड़कर शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। ऐसा करने से बच्चे उसे सही ढंग से अपनाते हैं और जीवन में अमल करते हैं। वे अपनी कमजोरियों को शिक्षकों के सामने रख देते हैं, जिससे शिक्षक सही मार्गदर्शन प्रदान कर उनकी कमजोरियों को हमेशा के लिए समाप्त कर देते हैं और छात्रों में आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। भयमुक्त वातावरण होने के कारण उनके मन व आचरण में शिक्षकों के प्रति सम्मान भी बढ़ता है।
वास्तव में बच्चे तो कच्चे मिट्टी के समान होते हैं, और उन्हें स्वरूप देना गुरु के ऊपर निर्भर होता है। शिक्षक जन समाज के लिए रीढ़ की हड्डी हैं; उनका विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण और भविष्य निर्माण में बहुत बड़ा योगदान होता है। यह कहा जाता है कि दुनिया में एक शिक्षक या अध्यापक बनने से बड़ा कोई कार्य नहीं है। यह विश्व का सबसे महान एवं दुर्लभ पेशा है। शिक्षक दिवस शिक्षकों और छात्रों के रिश्तों को और भी मजबूत बनाने का एक महान अवसर है।
छात्र और शिक्षक का संबंध एक-दूसरे के पूरक हैं। न तो छात्र बिना शिक्षक के अपने जीवन को महान बना सकते हैं, और न ही शिक्षक बिना छात्रों के, अर्जित शिक्षा और ज्ञान को सही ढंग से उपयोग में ला सकते हैं। यदि शिक्षक अपना दायित्व पूर्ण रूप से वहन करना चाहता है, तो उसे सर्वप्रथम छात्रों को अनुशासित करना होगा। आधुनिक बिगड़ते परिवेश में शिक्षकों को अपनी अनेकों आकांक्षाओं एवं इच्छाओं को तिलांजलि देते हुए, स्वयं के जीवन को एक आदर्श जीवन के रूप में समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना होगा। असंभव को भी संभव बनाना शिक्षक के व्यक्तित्व पर निर्भर है।
हमें अपने जीवन में शिक्षकों के मूल्यों को समझना और महसूस करना चाहिए। शिक्षक वह महान व्यक्तित्व हैं, जो हमें हमेशा सफलता की राह दिखाते हैं। एक शिक्षक तभी खुश होता है और स्वयं को सफल मानता है, जब उसके छात्र आगे बढ़ते हैं, सफलता प्राप्त करते हैं और उसका नाम रोशन करते हैं।
शिक्षक सदैव वंदनीय रहे हैं और रहेंगे। क्योंकि पूरे जगत में चाहे वह वैज्ञानिक हो, इंजीनियर हो, डॉक्टर हो, नेता हो या व्यापारी, सभी को शिक्षक ही पढ़ाते हैं। इस कारण सबसे पहले गुरु का ही स्थान होता है।
*गुरु समान दाता नहीं, याचक शिष्य समान।
गुरु की कीजै वंदना, कोटि-कोटि प्रणाम।*
आज के अत्यंत पावन शिक्षक दिवस पर शिक्षकों का सम्मान तो होना ही चाहिए। शिक्षकों को सदैव आदर का स्थान देना चाहिए, क्योंकि शिक्षक ही समाज और राष्ट्र को सही दिशा दिखाते हैं।
शिक्षक दिवस के इस पावन अवसर पर मैं उन सभी महानुभावों को कोटि-कोटि प्रणाम अर्पित करता हूँ, जिन्होंने मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कभी न कभी, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ जरूर सिखाया है। मैं अपने जीवन के इस प्रारंभिक दौर में हर प्रकार का अनुभव देने वाले अपने सभी शिक्षकों का कोटि-कोटि वंदन करता हूँ। मेरे यह दोहे सभी शिक्षकों के श्री चरणों में समर्पित हैं:
*गुरु पद पंकज मानकर, चरण करें स्पर्श।
गुरु के आशीर्वाद से, जीवन में उत्कर्ष।।*

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