आज़ श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य का तृतीय दिवस मन की शुद्धि के लिए श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य से बड़ा कोई अन्य साधन नहीं हैं । इसके श्रवण मात्र से हरि ह्दय में विराजते हैं – पंडित दिनेश दुबे
आज़ श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य का तृतीय दिवस मन की शुद्धि के लिए श्रीमद्भागवत कथा महात्म्य से बड़ा कोई अन्य साधन नहीं हैं । इसके श्रवण मात्र से हरि ह्दय में विराजते हैं – पंडित दिनेश दुबे
न्यूज़ चांपा । श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुट मणि और सर्व वेदान्तो का सार हैं । अठारह पुराणों के उपवन में श्रीमद्भागवत कल्पतरु की भांति शोभायमान हैं । बारह स्कंध तथा अठारह हजार श्लोकों वाले यह पुराण ज्ञान का अक्षय भंडार तथा विद्धता की कसौटी हैं । यह जीव तभी तक अज्ञानवश इस संसार चक्र में भटकता हैं, जब तक क्षण भर के लिये भी कानों में इस शुक शास्त्र की कथा नहीं पड़ती । जिस प्रकार रस पेड़ ठी जड़ से लेकर शाखा तक व्याप्त रहता हैं , किंतु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता । वही रस जब अलग होकर फल के रूप में आता है तब सभी को प्रिय लगता हैं । भागवत वेदरूपी कल्प कृक्ष का परिपक्व फल हैं । शुकदेव रूपी शुक के मुख का संयोग होने से अमृत रस से परिपूर्ण हैं । यह रस ही रस है। इसमें ना छिलका है , ना गुठली। यह इसी लोक में सुलभ हैं । इसलिए जब तक शरीर में चेतना रहे तब तक बार-बार इसका पान करें । इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष सुलभ होने के साथ ही साथ भगवान के चरण कमलों की अविचल भक्ति भी सहज प्राप्त हो जाती हैं । मन की शुद्धि के लिये इससे बड़ा कोई अन्य साधन नहीं हैं , इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं । उक्त उद्गार ब्राह्मण पारा चांपा में गोलोकवासी श्रीमति आशा द्विवेदी की स्मृति में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस सुप्रसिद्ध भागवताचार्य पंड़ित पंडित दिनेश कुमार दुबे पुरगांव वाले ने मुख्य यजमान श्रीमति श्वेता जयप्रकाश द्विवेदी सहित उपस्थित श्रोताओं को कथा श्रवण कराते हुए कही ।
*राजा परीक्षित को सात दिन तक्षक नाग से काट जाने का श्राप मिला ।*
आगे राजा परीक्षित की कथा का श्रवण कराते हुए भागवताचार्य ने कहा महाभारत युद्ध में कौरवों ने पांडवों के सारे पुत्रों का वध कर दिया था , तब उनका एकमात्र वंशधर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा था । पांडवों के पूरे वंश को खत्म करने के लिये कौरवों के साथी अश्वत्थामा ने उस गर्भस्थ बालक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया , तब भगवान श्रीकृष्ण ने उतरा के गर्भ में प्रवेश कर उस बालक की ब्रहास्त्र से रक्षा की । गर्भ में कठिन परीक्षा होने के कारण यही बालक परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुए और आगे चलकर राजा हुए। पांडवों ने संसार त्याग करते समय इनका राज्याभिषेक किया था , इन्होंने नीति के अनुसार पुत्र के समान प्रजा का पालन किया। एक समय ये दिग्विजय करने को निकले तो वहां कुरुक्षेत्र में इन्होंने देखा एक आदमी बैल को मार रहा हैं । वह आदमी जो वास्तव में कलियुग था , उसको इन्होंने तलवार खींचकर आज्ञा दी की यदि तुझे अपना जीवन प्यारा हैं तो मेरे राज्य से बाहर हो जा। तब कलियुग ने डरकर हाथ जोड़कर पूछा कि महाराज समस्त संसार में आपका ही राज्य है फिर मै कहां जाकर रहूं। राजा ने पांच स्थान बताते हुए कहा जहां मदिरा , जुआ , जीव हिंसा , वैश्या गमन और सुवर्ण हो वहां जाकर रहो। एक बार राजा सुवर्ण का मुकुट पहनकर आखेट खेलने के लिये गये और शिकार करते हुए वे वन में भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल होकर ऋषि शमीक के आश्रम में पहुंचे । ऋषि उस समय ध्यान में लीन थे , राजा ने उन्हें पुकारा तो भी ऋषि का उन पर ध्यान नहीं गया । राजा को लगा कि ऋषि शमीक ने जानबूझकर उनका अपमान किया हैं , गुस्से में एक मरे हुए सांप को तीर से उठाकर ऋषि के गले में डाल वे वहां से चले गए । बाद में पहुंचे ऋषि शमीक के तेजस्वी पुत्र श्रृंगी ऋषि को इसका पता लगा तो उन्होंने क्रोधित होकर राजा परीक्षित को सात दिन में तक्षक नाग से काटे जाने का श्राप दे दिया ।
*भगवान विष्णु के वराह रुप को देखकर सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने स्तुति की ओर वराह ने पृथ्वी को ढूंढ़ा और बाहर निकाला ।*
कथा की अगली कड़ी में व्यासचार्य ने वराह अवतार की कथा श्रवण कराते हुए कहा पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए । भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की । सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया और अंततः पृथ्वी का पता लगाकर समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आये । जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिये ललकारा । दोनों में भीषण युद्ध हुआ और अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया ।
*श्रीमद्भागवत कथा में शब्द का का अर्थ हिरण्य मतलब स्वर्ण और अक्ष का मतलब आंखें जिसकी आंखें दुसरे के धन पर लगी हो वो ही हिरण्याक्ष हैं- पं दुबे ।*
भागवताचार्य ने बताया कि का अर्थ हैं हिरण्य मतलब स्वर्ण और अक्ष मतलब आंखें ! जिसकी आंखें दूसरे के धन पर लगी रहती हों , वो वही हिरण्याक्ष हैं । हिरण्याक्ष का वध करने के बाद भगवान वराह ने अपने खुरो से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया । इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए ।
*लोक कल्याण मय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में कथा श्रवण कर पुण्य के भागी बनने की अपील मोहन द्विवेदी ने की ।*
धार्मिक आस्था से परिपूर्ण पंडित अरविंद तिवारी तथा शशिभूषण सोनी ने बताया कि कि इस कथा के आचार्य पंडित वृंदा प्रसाद दुबे ग्राम अमोरा -महंत वाले हैं । यह देव दुर्लभ कथा प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से हरि इच्छा तक चलेंगी । जिसके अगले चरण में आज 21 सितम्बर ,2024 दिन शनिवार को शिव चरित्र , ध्रुव चरित्र एवं जड़ भरत की कथाएं , 22 सितम्बर दिन रविवार को नरसिंह अवतार एवं समुद्र मंथन , 23 सितम्बर सोमवार को श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग , 24 सितम्बर दिन मंगलवार को श्रीकृष्ण-रूखमणि मंगल विवाह प्रसंग, 25 सितम्बर बुधवार को सुदामा चरित्र , 26 सितम्बर गुरूवार को चढ़ोत्तरी के साथ-साथ कथा का विश्राम हो जायेगा । दिनांक 27 सितम्बर शुक्रवार को हवन , सहस्त्रधारा , कपिला तर्पण , ब्राह्मण भोज एवं श्रीमद्भागवत कथा का विधिवत् विसर्जन हो जायेगा । कथा के आयोजक पुरी शंकराचार्य जी द्वारा संस्थापित संगठन पीठ परिषद के वरिष्ठ सदस्य पंडित मोहन द्विवेदी ने इस लोक मंगलकारी कल्याण मय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में सभी को सपरिवार , इष्ट मित्रों सहित पधारकर कथा श्रवण कर पुण्य के भागी बनने की अपील की हैं ।