तीर्थ यात्रा ! 13 वीं तवांग तीर्थ-यात्रा 19 से 25 नवंबर , 2024 तक आयोजित होगी तवांग तीर्थ यात्रा में भारतवर्ष की आत्मा रची- बसी हुई हैं – पंकज गोयल
तीर्थ यात्रा ! 13 वीं तवांग तीर्थ-यात्रा 19 से 25 नवंबर , 2024 तक आयोजित होगी तवांग तीर्थ यात्रा में भारतवर्ष की आत्मा रची- बसी हुई हैं – पंकज गोयल
न्यूज़ जांजगीर-चांपा । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं भारत तिब्बत सहयोग मंच के मार्गदर्शक माननीय डॉक्टर इन्द्रेंश कुमार के मार्गदर्शन में संचालित मंच तिब्बत की आजादी , कैलाश मानसरोवर की मुक्ति , हिमालय की रक्षा , पर्यावरण की सुरक्षा एवं अन्य सम-सामयिक मुद्दों को लेकर अनवरत 25 वर्षों से कार्य कर रहा हैं । मंच अपनी सक्रियता , कार्यक्रमों एवं जन-जागरण के माध्यम से नित नई उपलब्धियों के साथ आगे बढ़ता जा रहा हैं । उपलब्धियों की दृष्टि से मंच की बात की जाएं तो तमाम उपलब्धियों के साथ एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं , तवांग तीर्थ-यात्रा ! तवांग तीर्थ-यात्रा को माननीय डॉक्टर इन्द्रेंश कुमार ने वर्ष 2012 में प्रारम्भ किया था । इस वर्ष यह यात्रा 19 से 25 नवम्बर ,2024 तक आयोजित होगी । इस बार आयोजित होने वाली 13 वीं तवांग तीर्थ-यात्रा नया इतिहास रचने के लिए तैयार हैं ।
*नवंबर माह में आयोजित तवांग यात्रा का उद्देश्य बेहद पवित्र और पावन हैं ।*
इस संबंध में दैनिक समाचार-पत्रों से सम्बद्ध तथा साहित्यकार शशिभूषण सोनी को जानकारी देते हुए पंकज गोयल जी का कहना हैं कि यदि तवांग तीर्थ- यात्रा का निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाएं तो बिना किसी लाग-लपेट के कहा जा सकता हैं कि इस यात्रा का उद्देश्य बेहद पवित्र हैं । इस यात्रा को नवम्बर मास में आयोजित करने का एक खास मक़सद यह भी हैं कि दुष्ट चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे को दरकिनार करते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया था ।
*देश के वीर नवजवानों ने अपर्याप्त संसाधन होने के बावजूद चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया था।*
इसी अरुणाचल प्रदेश में हमारे वीर सैनिकों ने अपर्याप्त संसाधनों के बावजूद चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया था l सैनिकों कि वीरता से घबराकर चीनी सैनिकों को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा । सन 1962 में ही 14 नवम्बर को भारतीय संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में यह संकल्प लिया गया था कि चीन द्वारा हाथापाई गई भूमि का एक-एक इंच वापस लिया जायेगा । जब तक सारी भूमि वापस नहीं ले ली जायेगी तब तक चैन से नहीं बैठा जायेगा l इस यात्रा के माध्यम से देश के हुक्मरानों को यह याद दिलाया जाता हैं कि 14 नवम्बर 1962 को भारतीय संसद में लिए गए संकल्प को पूरा करने का समय आ गया हैं । इस संकल्प को पूरा करने के लिए सरकार आगे बड़े और देशवासियों को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करे ।
*हर भारतवासी को सूर्य की धरती के रुप में सुविख्यात बुमला बार्डर तक की यात्रा जरुर करनी चाहिए: शशिभूषण सोनी।*
नगर के साहित्यकार तथा गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा संस्मरण के लेखक शशिभूषण सोनी ने भी कहा कि मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना हैं कि प्रत्येक भारतवासी को सूर्य की धरती के रूप में सुविख्यात अरुणाचल प्रदेश के बुमला बॉर्डर तक की यात्रा एक बार अपने जीवन में अवश्य करनी चाहिए , इससे पूरे राष्ट्र को जानने और समझनें का भरपूर अवसर मिलेगा ।