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शिक्षक समाज पथ प्रदर्शक और राष्ट्र के निर्माता होते है माता-पिता तो सिर्फ जन्म दिए हैं, मगर गुरु जीवन को सार्थक बनाते हैं।

शिक्षक समाज पथ प्रदर्शक और राष्ट्र के निर्माता होते है माता-पिता तो सिर्फ जन्म दिए हैं, मगर गुरु जीवन को सार्थक बनाते हैं।

जांजगीर चांपा विवेकानंद का यह कथन स्पष्ट करता है शिष्य को गुरु पर कितना विश्वास और श्रद्धा होता है।
एक छोटा बच्चा अपने पिताजी से कहता है मैडम ने कहा है, 100 पेज का कॉपी लेकर आना पिताजी लेकर आते हैं, बच्चा एक-एक पेज गिनता है। अंत में चीखने लगता है, यह तो 92 पेज है। पिताजी कहते हैं ,100 पेज की कॉपी में इतने ही पेज होते हैं ।बच्चा कहता है आप झूठ बोल रहे हैं मैडम ने कहा है तो 100 मतलब 100 पेज होना चाहिए। छोटे बच्चों को अपने शिक्षक पर विश्वास होता है शिक्षक आदर्श होता है।
शिक्षक का पढ़ने, बोलने और बैठने के ढंग का नकल करता है। पर बाद में धीरे-धीरे यह विश्वास श्रद्धा खत्म होने लगता है सभी बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता पर अधिकतर बच्चों के साथ ऐसा होता है। और ऐसा होने पर खुद पर विश्वास नहीं रह जाता अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता हमारा पारिवारिक सामाजिक वातावरण इसके लिए दोषी है । जब बच्चा बेईमानी देखता है कई चेहरे वाले लोगों को अपने आसपास पाता है। मन में कुछ और बोलते हैं कुछ और करते हैं कुछ और है और इस दायरे में उसका शिक्षक भी आ जाता है। तब बड़ा होता बच्चे का विश्वास हिल जाता है, हो सकता है इसके बाद भी वह बालक किसी विशेष क्षेत्र में सफल हो जाए नाम और पैसा खूब कमा ले पर वह एक अच्छा इंसान बनने से चूक जाता है।
आज हमारे आसपास संवेदनशील दूसरों का दर्द समझने वाले दूसरों की चुपचाप सहायता करने वाले कितने लोग हैं? एक कुम्मार चिलम बना रहा है चिलम बनाते बनाते सोचने लगता है गर्मी के दिन आ रहे हैं चिलम की बजाय घड़े बनाना ज्यादा ठीक होगा घड़े ज्यादा बिकेंगे इसके बाद वह चिलम बनाना छोड़ घड़े बनाना शुरू करता है। यह देख मिट्टी कुम्मार से कहता है पहले चिलम बना रहे थे अब घड़ा बनाने लगे ऐसा क्यों कुम्हार कहता है मेरा विचार बदल गया मिट्टी कहता है तुम्हारा विचार बदल गया मेरा जीवन बदल गया । चिलम बनता तो खुद जलता और दूसरे के सीने में जलन पैदा करता पर अब खुद ठंडा रहूंगा और दूसरे को भी ठंडा जल पीकत ठंडक पहुंचाऊंगा । शिक्षा का विचार बदलता है तो विद्यार्थी का जीवन बदल जाता है विद्यार्थी कच्ची मिट्टी के समान है जो सांचे में ढालेंगे ढल जाएंगे।
शिक्षक का उद्देश्य सीखाना, शिष्य का लक्ष्य है सीखना और यह तभी हो सकता है जब शिक्षक सिर्फ शिक्षक रहे और विद्यार्थी सिर्फ विद्यार्थी रहे जब शिक्षक विक्रेता और विद्यार्थी क्रेता बन जाता है। तो शिक्षा बाजार बन जाता है शिक्षक का चरित्र आचरण व्यवहार ऐसा हो जिसे देखकर विद्यार्थी में जीवन मूल्यों का विकास हो पाठ्यक्रम का नैतिक शिक्षा परीक्षा उत्तीर्ण करने के काम ही आएगा। जो सीखाते हैं वह कम सीखने हैं पर आसपास देखकर ज्यादा सीखते हैं। इसलिए शिक्षक का उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है वह मनुष्य निर्माता है। इसलिए वह हमेशा सकारात्मक रहे, किसी विद्यार्थी को ना कहे तुम कुछ नहीं कर सकते, बल्कि यह विश्वास करना होगा और विद्यार्थी को विश्वास दिलाना होगा तुम कर सकते हो। एक बार असफलता मिली फिर प्रयास करो शिक्षक को पता होना चाहिए जो जितने बार असफल होता है उसे उसके ज्यादा महान कार्य करने की उतनी ही अधिक संभावना बनती है।
शिक्षा का यह विश्वास विद्यार्थी का आत्मविश्वास बन सकता है। उसके हाथ में विश्वास का आधार बन सकता है। शिक्षक का प्रेम अपनापन का भाव विद्यार्थी को समर्पण का भाव सिखाता है। शिक्षक एक विद्यार्थी की तुलना दूसरे से कभी ना करें बल्कि एक दूसरे से सीखने के लिए प्रेरित करें एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा ना करें खुद से प्रतिस्पर्धा करना को पहचान कर उसे दूर करने के लिए प्रोत्साहित करें। अपने साथी की सफलता में खुश होना सिखाएं विद्यार्थी को दूसरे का नकल करना ना सिखाएं उसकी मौलिकता बनी रहे मौलिक गुणो के विकास के लिए विद्यार्थी का मार्गदर्शन करें। परिश्रम में आनंद का अनुभव कराये सदैव सक्रिय और निरंतर अध्ययनशील रखने का प्रयास करें ,विद्यार्थी जीवन का आनंद लेना सिखाएं।
शिक्षक विद्यार्थी का संबंध इस पर निर्भर करता है क्या शिक्षक मन से विद्यार्थी का अच्छा चाहता है पुरानी शिक्षा नीति ठीक या नहीं या नईशिक्षा नीति यह बहस का विषय है। पर अच्छी नीति से ज्यादा जरूरी अच्छी नियत है शिक्षक का अच्छा नियत मनुष्य निर्माण और मनुष्य निर्माण से राष्ट्र निर्माण करता है

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