पितृ पक्ष विशेष – “ब्रह्म कपाल” जहाँ शिव जी ने किया ब्रह्मा जी का श्राद्ध
पितृ पक्ष विशेष – “ब्रह्म कपाल” जहाँ शिव जी ने किया ब्रह्मा जी का श्राद्ध
जनादेश 24न्यूज पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है l पितृ पक्ष के 16 दिन अपने पूर्वजों को सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए होते है l यह पक्ष हिन्दू धर्म में बहुत विशेष मान्यता रखता है l माना जाता है इस समय में पूर्वज धरती पर सूक्ष्म रूप में अपने परिवार के बीच उपस्थित रहते है और उनके प्रति किये गए दान – धर्म व श्राद्ध को ग्रहण कर आशीर्वाद प्रदान करते है l
हिन्दू धर्म में पिंड दान व श्राद्ध का बहुत महत्त्व है l देश भर में कुछ ऐसे विशेष स्थान है जहाँ पिंड दान करना बहुत ही पवित्र माना जाता है l इनमे से ही एक अति विशेष और महत्वपूर्ण स्थान है बद्रीनाथ का ब्रह्म कपाल l
उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर मौजूद ब्रम्हा कपाल में पितृ पक्ष के मौके पर हजारों लोग पिंड दान करने पहुंचते हैं। ब्रम्हा कपाल एक बेहद ही खूबसूरत जगह के साथ-साथ पवित्र स्थल के रूप में ही जाना जाता है।
अलकनंदा नदी के किनारे स्थित ब्रम्हा कपाल के बारे में बोला जाता है कि जो लोग यहां पिंड दान करते हैं, उनके पूर्वजों की आत्मा सीधे स्वर्ग पहुंचती है। पौराणिक कथा है कि जब भगवान शिव ने भगवान ब्रह्मा का पांचवा सिर काटा तो वो ब्रम्हा कपाल में ही गिरा था। इसके बाद जब भगवान शिव पर मृत दोष लगा तो ब्रम्हा कपाल में ही श्राद्ध किया था।
स्कन्द पुराण के अनुसार इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदाई पितृ कारक तीर्थ कहा गया है। यहां विधिपूर्वक पिंडदान करने से पितरों को नरक लोक से मोक्ष मिल जाता है।
तीर्थ की मान्यता को लेकर याज्ञवल्क्य स्मृति में महर्षि याज्ञवल्क्य लिखते हैं कि “आयुः प्रजा, धन विद्यां स्वर्ग, मोक्ष सुखानि च. प्रयच्छन्ति तथा राज्य पितरः श्राद्ध तर्पिता (पितर श्राद्ध से तृप्त होकर आयु, पूजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य व अन्य सभी सुख प्रदान करते हैं)”. मान्यता है कि ब्रह्माजी जब स्वयं के द्वारा उत्पन्न शतरूपा (सरस्वती) की सुंदरता पर मोहित हो गए थे, तब शिव ने अपने त्रिशूल से उनका पांचवां सिर काट दिया था. जिस पर उनका सिर त्रिशूल पर चिपक गया व उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा.
जिसके निवारण के लिए भगवान शिव आर्यावर्त (हिमालय) के तीर्थ स्थलों पर गए, लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिली. इससे हताश होकर वे अपने धाम कैलाश लौटने लगे. इस दौरान बद्रिकाश्रम (बद्रीनाथ) के पास अलकनंदा नदी के तट पर बद्रीनाथ के इस स्थान पर ब्रह्माजी का पांचवां सिर त्रिशूल से कट कर धरती पर गिर गया था और इसी स्थान पर शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली.
पांडवों को गोत्र हत्या के पाप से मिली मुक्ति
श्रीमदभागवत महापुराण में उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध अपने ही बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्माजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।